Tuesday, January 26, 2010

चलो मस्त तुम

चलो मस्त तुम तो धरा डोल देगी ।
अगर तुम हुंकारों चिता बोल देगी ॥
बनो साहसी सेतु सागर पे बांधो ।
समुन्दर की लहरों को तुम दास कर लो ॥
धरा तो तुम्हारे बहुत सन्निकट है ।
गगन ,रश्मियाँ, मेघ तुम पास कर लो॥
कि अमरत्व जीवन में लेकर न आना ।
कि पुरुषत्व ललकार पर मत भुलाना ॥
मगर देख लो हो सके इतना करना ।
कटे सर भले सर कभी न झुकाना ॥


हिन्दू हो या मुसलमान

हिन्दू हो या मुसलमान सबका खून लाल है ।
फिर आज क्यूँ दिलो में सबके मलाल है ॥
जब एक ही मालिक ने बनाया है ये जहाँ ।
फिर मंदिरों और मस्जिदों पैर क्यूँ बवाल है ॥
अपना ही घर जलाकर बन बैठे तमाशायी ।
अब जमी से फलक तक सब सुर्ख लाल है ॥
इस अमन के शहर में सब कुछ है जल रहा ।
हाय ! ये हिन्दोस्तां का कैसा हाल है ॥
जी रही संगीनों के साये में जिन्दगी ।
जिन्दगी और मौत का अब क्या सवाल है ॥
खुद बागबां बन बैठा है कातिल यहाँ गुलों का ।
है खून बह रहा कौन कहता गुलाल है ॥